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Showing posts from February, 2022

मजनूं की तकदीर

में मोहब्बत के उसूल बदलूंगा बिछड़ने का दस्तूर बदलूंगा बराबरी से पत्थर पड़ेंगे लैला को भी में मजनूं की तकदीर बदलूंगा

Zamane ki hakikat

ज़मानें की हकीकत से हकीकतन अनजान हूँ में कोई बसेरा नही मुझमें एक शहर वीरान हूँ में कुछ यादें कुछ रिश्ते दफन हें मुझमें चलता फिरता कब्रिस्तान हूँ में खुशियां देकर गम चुरा लेता हूँ अजनबियों को भी हमराज़ बना लेता हूँ फिर भी इल्ज़ाम लगे हें बेईमान हु में सांसे चल रही हें अब तो रस्मन अनस वेसे दिल से तो बेजान हूँ में तन्हाईयों में घिर कर पत्थर हो गया हूं पहले कभी लगता था इंसान हु में ज़माने की हकीकत से हकीकतन अनजान हूँ में

तेरी खामोशी

कुछ रोज़ से मैंने अपना सफर रोक रखा है सब सामान बाँध लिया बिस्तर रोक रखा है तेरे बुलाने पर छोड़ आऊँ में दुनिया दारी बस तेरी खामोशी ने ही मुझे घर रोक रखा है

शोक ए ज़िन्दगी

गमों पर ग़लबा खुशी को नही होता ईश्क़ भी तो हासिल हर किसी को नही होता किसी को वजह मिल गयी कोई मजबूरियों में जी राहा है शोक ए ज़िन्दगी सभी को नही होता।